BOLO SHARAVAN KUMAR
बोलो श्रवण कुमार श्रवण नाम है ना तुम्हारा श्रवण ही करते हो… कभी बोलते नही?
काश तुम बोल पाते … काश तुम बोले होते
बोले होते तो शायद बच जाते ….
और बच जाते हम सब भी
16 की उम्र में मर कर अमर हो गए
पर तुम्हारे कारण मरते हैं मुझ से रोज कई
काश तुम बोल पाते … काश तुम बोले होते
काश कह पाते राजा दशरथ से मैं पशु नहीं बालक हूँ
ऐसा बालक तो माँ बाप की लाचारी से जल्दी जवान हो गया
काश तुम बोल पाते काश तुम बोल पाते अपने माँ बाप से मैं
मात्र 16 साल का हूँ आपका बोझ सहने की क्षमता मुझमें नहीं है मुझे क्षमा करें
काश तुम बोल पाए होते काश तुम बोले होते श्रवण कुमार
तो आज कई श्रवण जीवन अमित और सुमित वो सब बोल पाते और आज ज़िंदा होते
पर तुम ना बोले
देश के माता पिता तुम्हारे कंधो परे क्या सवार हुए युगों बीत गए उतरने का नाम ही नहीं ले रहे
कोई कैकेई उनपर अत्याचार करती है तो कोई कमला
कोई शांतनु तो कोई शर्मा जी सब के सब कंधों पे सवार हैं
कहते हैं हम भगवान का रूप हैं
सब तुम्हारे कारण.. श्रवण कुमार
होवोगे तुम नायक अमर कथा क पर हमारे दोषी हो तुम
तुम्हारे मौन में घुट कर रेगई कितनी चीखें
कितने क्रांतन, कितने अंतर्नाद, कितनी चीत्कारेंपर तुम ना बोले
और ना बोल पाए वो जो
झूल गए कोटा के फंदों से
माँ बाप फिर भी सवार हैं कंधो पे
तब से आज तक
उन्हें ना दिखी तुम्हारी पीड़ा ना दिखा हमारा क्रंदन
किसी डॉक्टर चाहिए किसी को इंजीनियर
किसी को बच्चों से प्यारे जाति समाज अपने
सभी के हैं सरकारी नौकरी के सपने
किसी का तलाक कराते हैं तो किसी की शादी
इनकी महत्वाकांक्षा कर रही बर्बादी
बोलो बहुत हुआ अब… नीचो उतरो कंधों से…
ना कुचलो अपनी अकांक्षाओं के बोझ के तले
वो तुम्हें पूजते हैं तुम्हारा नाम लेकर हमको पालते पोसते हैं
और अक्सर निराश होने पर तुम्हारे नाम पर कोसते हैं
वो शायद तुम्हारी बात सुन लें कह दो उन्हें उतर जाएं कंधों से
घायल हैं आज भी कोमल कंधे
माता पिता है आज भी अंधे
तुमसे आबाद हैं कई कई धंधे
वह कोचिंग की फीसें वह स्कूलों के चंदे
वह दिल्ली के दड़बे
वह कोटा के फंदे
उस आंतिम नोट में छिपी हुई पीढ़
वह 17 साल का झूलता शरीर
करते हैं सवाल, सन्नाटे को चीर
चुप क्यों हो, श्रवण कुमार… अब तो बोलो